क्या आरक्षण को समाप्त करने की फिराक में है सरकार?

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी में एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण को लेकर एतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें अदालत ने 2004 के उस फैसले को पलट दिया था जिसमें राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों को सब कैटेगरी में वर्गीकृत नहीं कर सकती थी। बीते 1 अगस्त, 2024 को कोर्ट ने लंबे समय से लटके पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम को सही ठहराया। हालांकि SC के इस फैसले से नाखुश होकर आदिवासी और संबंधित वर्गों ने 21 अगस्त को भारत बंद करने का ऐलान किया था।

भारत में आरक्षण को लेकर एक अलग ही तरह की राजनीति देखी जाती है। लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों ने जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों को आधार बनाकर चुनाव लडा।

आरक्षण पर क्या कहते थे भीमराव अंबेडकर

बात 25 नवंबर, 1949 की है जब संविधान की अंतिम बैठक आयोजित हुई थी। इस बैठक में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने कहा कि अगर आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो अगली पीढ़ी को आरक्षण का फायदा नहीं दिया जाना चाहिए। आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं, जिसके सहारे पूरा जीवन काट दिया जाए।

क्यों लागू हुआ था आरक्षण

भारतीय संविधान के अनुसार, आरक्षण लागू करने का मकसद अनुसूचित जातियों और जनजातियों या सामाजिक और पिछड़े वर्ग (OBC) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को आगे बढ़ाना है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5), 15(6) में कई प्रावधान किए गए हैं। वहीं 16(4) और 16(6) के तहत नौकरियों या अवसरों में पिछड़ा वर्ग या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो इसका प्रावधान किया गया है।

आरक्षण पर सरकार की मंसा?

वर्तमान में, भारतीय सरकार की आरक्षण समाप्त करने की कोई स्पष्ट मंशा नहीं है। चूंकि यह एक संवैधानिक प्रावधान है जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाना है। हालांकि, सरकारें आरक्षण की सीमाओं को लेकर और अधिक संशोधन कर सकती हैं, जैसे कि क्रीमी लेयर की अवधारणा या आर्थिक आधार पर आरक्षण देना, लेकिन इसके पूरी तरह से समाप्त होने की संभावना कम है। राजनीतिक दलों के लिए यह मुद्दा संवेदनशील है और चुनावी रणनीतियों के तहत इसका इस्तेमाल होता है।