गेहूँ की नई किस्मों से बढ़ेगी उत्पादन क्षमता पढ़िए पूरी खबर
भारतीय किसान अपनी फसलों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। गेहूँ की खेती में भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत कार्यरत भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने गेहूँ की पांच नई उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्में विकसित की हैं। ये किस्में विशेष रूप से कम पानी में अधिक उत्पादन देने में सक्षम हैं, और इनमें से कुछ किस्में केवल 150 दिन में छपड़ फाड़ उत्पादन कर सकती हैं।
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नई किस्मों का महत्व
भारत में गेहूँ मुख्य अनाजों में से एक है और इसकी खेती कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी के कारण किसान अधिक दबाव में हैं। ऐसे में, उच्च उत्पादन क्षमता वाली नई किस्में किसानों के लिए एक उम्मीद की किरण साबित हो सकती हैं। ये किस्में न केवल उत्पादन को बढ़ाने में मदद करेंगी, बल्कि कम जल उपयोग के साथ भी फसल को सुरक्षित रख सकती हैं।
पांच नई किस्में
भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने जिन पांच नई किस्मों को विकसित किया है, वे निम्नलिखित हैं:
- HW 5416: यह किस्म कम पानी में भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम है और इसकी बढ़ती फसल का समय लगभग 150 दिन है।
- HW 5433: यह किस्म रोगों के प्रति प्रतिरोधक है और इसका उत्पादन क्षमता अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है।
- HW 5434: इसे विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है, जहाँ पानी की कमी एक बड़ी समस्या है।
- HW 5417: यह किस्म न केवल उत्पादन में सुधार करती है, बल्कि गुणवत्ता में भी बेहतरीन है।
- HW 5418: यह किस्म भी कम समय में उच्च पैदावार देने में सक्षम है और किसान इसे आसानी से उगा सकते हैं।
बुवाई का समय
इन नई किस्मों की बुवाई के लिए सही समय अक्टूबर से शुरू होगा। किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे इन उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का चयन करें, ताकि वे अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें। बुवाई के समय पर ध्यान देने से फसल का स्वास्थ्य और उत्पादन दोनों बेहतर हो सकते हैं।
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तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण
आईसीएआर के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के लिए तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों में किसानों को नई किस्मों की विशेषताओं, उनकी बुवाई और देखभाल के तरीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी। इससे किसानों को इन नई किस्मों का अधिकतम लाभ उठाने में मदद मिलेगी।